Thursday, 13 June 2013

 गिरी शिखरोंसे घने वनोसे तुम अविरत बहते हो 
 कितनी बाधाएँ और संकट हंसकर  सह लेते हो 
जीवन जीना क्या  होता है क्यों न सीखे   तुमसे 
 मंजिलतक रुक न पाए यही सोच हो इस पलसे