Monday, 24 June 2013

हम उनको न पा सके तो क्या उनके हो तो सकते हैं 
वो हमें भलेही न चाहें हम तो उनको चाह सकते हैं 

वो अपनी आदत और हम मुहब्बत से लाचार हैं 
ऐसे आजतक न जाने कितने गुमनाम फ़साने हैं


Tuesday, 18 June 2013

परमात्माकी अद्भुत रचना इस धरतीपर एक से एक 
मानव तुझसा बुद्धिमान पर नहीं कोई उनमे एक 
हम सब मिलकर इस धरतीको सवांरते रहते है 
हाथिसे चीटीतक जीव  कभी न पीछे हटते है   
तू एक ऐसा निर्दयी सब जीवों का अपराधी है 
हम सबके सभी दुखों का तू एकमात्र कारण है 
जो तू अपनी बुद्धि का सदुपयोग न कर पाएगा 
ईश्वर  भी अपनी श्रेष्ठ कृतिपर पछताएगा
  

Thursday, 13 June 2013

 गिरी शिखरोंसे घने वनोसे तुम अविरत बहते हो 
 कितनी बाधाएँ और संकट हंसकर  सह लेते हो 
जीवन जीना क्या  होता है क्यों न सीखे   तुमसे 
 मंजिलतक रुक न पाए यही सोच हो इस पलसे