Monday, 30 September 2013

कितने ही घोटाले करलो यहाँ किसीको खतरा नहीं 
सोयी रहती है जनता जागने के कोई आसार नहीं 
अगर विद्रोहका स्वर फूटे तो दब जाता है कुछ ऐसे 
पतझड की बौछार में नन्हा कोई फूल मिट जाए जैसे 
सत्ताकी गलियों में अनगिन गुनाह  पनपते रहते हैं
यहाँ सज्जन सभी सदा मौनव्रत को श्रेष्ट समझते हैं
हम नित्यही अपने आदर्षों को लज्जित करते हैं
फिरभी रामकृष्ण को अपनी विरासत समझते हैं
पता नहीं कब होगा वीरता और साहस का सूर्योदय 
कब मिटेगा भीरुताका तमस और अन्यायका विलय 
             सौ.उषा लेले ३०.९.२०१३ 

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