Saturday, 16 November 2013

                                                                                                 श्री 


चलो दिलदार चलो कहीं दूर चलो 

जहाँ नजरोंके पहरे न हो कहीं ऐसी जगह चलो 

जहाँ ये दुनियादारी न हो वफ़ा और बेवफाईके चर्चे न हो 

मेरे और तुम्हारे दरमियाँ जानेमन मेरी हया का नशीला पर्दा न हो 

अवनिसे अम्बर तक खामोशिके संगीतमें मेरे तुम्हारे सिवा कोई न हो 

सौ.उषा लेले १६.११.२०१३ 

Tuesday, 5 November 2013

                                 श्री 


चलो जलायें दीप वहां जहां अभीभी अंधियारा है

नवसंवत्सरनेभी बन कठोर जिनसे मुख मोड है 

म्लानवदन पर घोर निराशाके बदल गहरे छाये है 

जीवनकी अग्निपरीक्षाने जिनसे हर सुख छीना है  

उनके मुख खिल जाये हम ऐसा कोई जतन करें

चलो जलायें दीप वहां जहां अभीभी अंधियारा है

सौ उषा लेले ०५११२०१३

Monday, 30 September 2013

कितने ही घोटाले करलो यहाँ किसीको खतरा नहीं 
सोयी रहती है जनता जागने के कोई आसार नहीं 
अगर विद्रोहका स्वर फूटे तो दब जाता है कुछ ऐसे 
पतझड की बौछार में नन्हा कोई फूल मिट जाए जैसे 
सत्ताकी गलियों में अनगिन गुनाह  पनपते रहते हैं
यहाँ सज्जन सभी सदा मौनव्रत को श्रेष्ट समझते हैं
हम नित्यही अपने आदर्षों को लज्जित करते हैं
फिरभी रामकृष्ण को अपनी विरासत समझते हैं
पता नहीं कब होगा वीरता और साहस का सूर्योदय 
कब मिटेगा भीरुताका तमस और अन्यायका विलय 
             सौ.उषा लेले ३०.९.२०१३ 

Thursday, 26 September 2013

जबसे तुमको देखा एक विचार मन में आया 
कौन चराचर में ऐसा है जिसने नसीब ये पाया  
राह दिखानेवाला प्रायः अकेला पथिक होता है 
उपेक्षा,अपमान और हत्या ये मिलता इनाम है 


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Monday, 24 June 2013

हम उनको न पा सके तो क्या उनके हो तो सकते हैं 
वो हमें भलेही न चाहें हम तो उनको चाह सकते हैं 

वो अपनी आदत और हम मुहब्बत से लाचार हैं 
ऐसे आजतक न जाने कितने गुमनाम फ़साने हैं


Tuesday, 18 June 2013

परमात्माकी अद्भुत रचना इस धरतीपर एक से एक 
मानव तुझसा बुद्धिमान पर नहीं कोई उनमे एक 
हम सब मिलकर इस धरतीको सवांरते रहते है 
हाथिसे चीटीतक जीव  कभी न पीछे हटते है   
तू एक ऐसा निर्दयी सब जीवों का अपराधी है 
हम सबके सभी दुखों का तू एकमात्र कारण है 
जो तू अपनी बुद्धि का सदुपयोग न कर पाएगा 
ईश्वर  भी अपनी श्रेष्ठ कृतिपर पछताएगा
  

Thursday, 13 June 2013

 गिरी शिखरोंसे घने वनोसे तुम अविरत बहते हो 
 कितनी बाधाएँ और संकट हंसकर  सह लेते हो 
जीवन जीना क्या  होता है क्यों न सीखे   तुमसे 
 मंजिलतक रुक न पाए यही सोच हो इस पलसे